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किसी फ़िल्मी कहानी कम नहीं है ईशान किशन की संघर्ष की कहानी , क्रिकेट के लिए 12 साल की उम्र कई रात भूखे पेट सोए

इशान किशन के उत्तम मजूमदार ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में बताया कि उन्होंने पहली बार किशन को 2005 में देखा था। वे अपने बड़े भाई राजकिशन के साथ उनसे मिलने गए थे। किशन के पिता प्रणव कुमार पांडेय ने बताया, ‘मजूमदार ने मुझे कहा कि कुछ भी करना अपने लड़के का क्रिकेट बंद मत करना। हम उनके पास बड़े बेटे के सिलेक्शन के लिए गए थे लेकिन इशान ने उन्हें ज्यादा प्रभावित किया। इसके बाद मजूमदार ने कहा कि इशान में कुछ स्पार्क है। उसक मैदान में चलना और क्रिकेट के बारे में सोचना उसे अन्य लड़कों से अलग बनाता है।’’

किशन का क्रिकेटिंग करियर आगे नहीं बढ़ता अगर वो पटना में रहते। जब किशन 12 साल के थे, तब उनके परिवार को अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण निर्णय लेना पड़ा। किशन के पिता ने कहा, ‘‘वह उस समय छोटा था। उसके कोच और अन्य लोगों ने कहाल कि अगल उसे बड़े स्तर पर क्रिकेट खेलना है तो रांची शिफ्ट होना पड़ेगा। उसकी मां परेशान थी, लेकिन काफी चर्चा के बाद हमने उसे पड़ोसी राज्य में भेजने का फैसला किया। मन में कुछ डर था, लेकिन इशान रांची जाने की जिद पर अड़ा था।’’

किशन को रांची में जिला क्रिकेट टूर्नामेंट में SAIL (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) टीम के लिए चुना गया था। सेल ने उसे एक कमरे का क्वार्टर दिया जिसमें चार अन्य सीनियर्स भी रहते थे। चूंकि इशान खाना बनाना नहीं जानते थे, इसलिए उनका काम बर्तन साफ करना और पानी स्टोर करना था। एक बार जब उनके पिता रांची आए, तो एक पड़ोसी ने उन्हें बताया कि उनका बेटा कई रात खाली पेट सोया है।

किशन के पिता ने कहा, ‘‘उसके सीनियर्स रात में क्रिकेट खेलने जाते थे और कई मौकों पर वो बिना खाना खाए सो जाता था। उसने हमें कभी नहीं बताया। ऐसा दो साल तक चलता रहा। कभी चिप्स तो कभी कुरकुरे और कोका-कोला पीकर सो जाता था। जब हम फोन करते थे तो वह झूठ बोलता था कि वह रात में खाना खाया है। एक बार जब हमें पता चला तो हमने तय किया कि हम रांची में एक फ्लैट किराए पर लेंगे।’’ किशन की मां सुचित्रा अपने बेटे के साथ नए घर में रहने लगीं।

15 साल की उम्र में किशन का चयन झारखंड रणजी टीम के लिए हुआ। उन्होंने असम के खिलाफ गुवाहाटी में ओपनिंग करते हुए 60 रन ठोक दिए। उनका चयन फिर भारतीय अंडर-19 क्रिकेट टीम में हो गया। राहुल द्रविड़ की कोचिंग वाली टीम में उन्हें कप्तान बनाया गया था। द्रविड़ उनके करियर को संवारने में लग गए। हालांकि, अंडर-19 वर्ल्ड कप में उनका प्रदर्शन ठीक नहीं था, लेकिन उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ा और आज भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य हैं।

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