बैल की मौत के बाद किसान ने की तेरहवीं, गांव वालों को खिलाया भोज, पूरा मामला जान हो जाएंगे भावुक

दोस्तो जैसे कि आप सबको पता है कि आज से कुछ  साल पहले हमारे पूर्वजों के पास ना तो गाड़िया थी और ना ही कोई ऐसी चीज थी जिससे वो लंबी दूरी की यात्रा कर सके। उस समय हमारे पूर्वज बैलगाड़ी के माध्यम से लंबी दूरी की यात्रा  आसानी से पूरा करते थे। बैल एक  जानवर है जो कि इंसान का ना सिर्फ उसकी खेती बाड़ी में मदद करता है बल्कि उसका एक अच्छा मित्र होता है।

लेकिन जैसे – जैसे समय बिताता गया , वैसे- वैसे बैलगाड़ी का उपयोग कम होने लगा है । लेकिन आज भी कई ऐसे क्षेत्र  है जहाँ बैलगाड़ी का उपयोग किया जाता है।आज के समय मे भी कुछ सामानों को लाने और ले  जाने के लिये बैलगाड़ी का उपयोग आज भी हो रहा है । जैसे -जैसे समय बदल रहा है लोग आधुनिक कृषि के तरफ बढ़ते चले जा रहे है। अब कृषि आधुनिक मशीनरी पर एक तरह से निर्भर हो  गयी है लेकिन आज भी लोग बैलगाड़ी का उपयोग ना करने के बावजूद बैलों को काफी महत्व देते है । आज के समय मे   भी किसान  के लिये बैल परिवार एक सदस्य जैसा होता है।

दरअसल दोस्तो आज हम आपको  महाराष्ट्र के बुलढाणा जिले के देवपुर की एक घटना बताने जा रहे है जहाँ किसान संदीप नरोटो के बैल की मौत हो गयी। बैल की मौत के बाद संदीप ने उसका पूरा विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार किया।असल मे संदीप के पिता जी ने 25 साल पहले एक बछड़े को लेकर आये थे  जिसका नाम उन्होंने सुक्रया रखा था। सुक्रया ने परिवार का कृषि में काफी लंबे समय तक साथ दिया था लेकिन दो साल पहले संदीप के परिवार वालो ने सुक्रया से काम करवाना इसलिए बंद कर दिया  था क्योंकि उसकी उम्र हो गयी थी। सुक्रया  की देखभाल बिल्कुल ऐसे की जाने लगी जैसे कि घर के बुजुर्गों की जाती है।

जैसे कि आप सबको पता है कि जब बैल बूढ़ा हो जाता है तो लोग उसकी देखभाल करने  की जगह उंन्हे घर से बाहर निकाल देते है ताकि उन्हें उसकी सेवा ना करनी पड़े  पर संदीप ने ऐसा नहीं किया बल्कि अपने बैल सुक्रया की काफी सेवा की । संदीप ने बताया कि वो सुक्रया को काफी मानते है , इसके पीछे भी एक खास वजह  है। दरअसल संदीप  बेटा जब 4 साल का था तब वो एक दुर्घटना का शिकार होने वाला था लेकिन सुक्रया के कारण  उसका बेटा बच गया था।

 

दरअसल एक बार संदीप बैलगाड़ी में अपने बेटे के साथ कही जा रहा था तब संदीप का बेटा सोहम बैलगाड़ी से नीचे गिर गया। सोहम कुछ ऐसा गिरा था कि अगर  बैलगाड़ी आगे बढ़ती तो सोहम की मौत तय थी लेकिन सुक्रया वही पर रुक गया जिस कारण से बैलगाड़ी आगे नहीं बढ़ी और सोहम बच गया। इसी  घटना के बाद से  संदीप और संदीप के परिवार वाले सुक्रया को घर के एक सदस्य के रूप में मानने लग गये थे। सुक्रया की मौत के बाद संदीप ने ना सिर्फ उसका अंतिम संस्कार किया बल्कि उसकी तेरहवीं भी की ताकि उसकी आत्मा को शांति मिल सकें। उसने ना सिर्फ बैल को फ़ोटो में माला चढ़ाई बल्कि उसके तेरहवीं में गांव वालों को भोजन भी खिलाया।

 

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