कहानी उस “वीर जवान की ” जिसने भारतीय सेना में न होते हुए भी जीती थी 1965 और 1971 की जंग

दोस्तो 2021  में अजय देवगन ,सोनाक्षी सिन्हा ,नोरा फतह और संजय दत्त की  Bhuj: The Pride of India नामक फ़िल्म रिलीज हुई थी जिसमें अजय देवगन के अभिनय की काफी सराहना हुई है । इस फ़िल्म में अजय देवगन ने भारतीय वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक  का किरदार निभाया है । इस फ़िल्म में विजय कार्णिक के  साहस और जज़्बे की कहानी बताई गयी है। इस  फ़िल्म संजय दत्त ने भारतीय सेना के ‘स्काउट’ रणछोड़दास पागी का किरदार निभाया था । आज  हम आपको रणछोड़दास पागी के ही बारे में बताने जा रहे है।

आप लोगो की जानकारी के लिये बता दे की  रणछोड़दास पागी का जन्म गुजरात के बनासकांठा ज़िले की सीमा से लगे पाकिस्तान के पथपुर गथरा (पिथापुर गांव) के एक ‘रबारी’ परिवार में  हुआ था।  रणछोड़दास का परिवार 1947 में  भारत विभाजन के  बाद पाकिस्तान सैनिक से परेशान होकर  बनासकांठा में बस गया । रणछोड़दास की ज़िंदगी  58 वर्ष की आयु में बदली जब  उंन्हे पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला के द्वारा बनासकांठा का पुलिस गाइड बना दिया गया।

दोस्तो ये घटना 1965 की है  जब पाकिस्तान की सेना ने कच्छ की सीमा’ पर स्थित विद्याकोट थाने पर हमला करके कब्जा कर लिया था । पाकिस्तान के इस आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सैनिकों ने भी कार्यवाही की जिसमें भारत मे 100 सैनिक शहीद हो गये थे ।इस घटना के बाद कि भारतीय सेना की एक टुकड़ी विद्याकोट के लिये रवाना कर दिए गयी थी , लेकिन इस सेना को पहुँचने में काफी समय लगने वाला था ।  इस मुश्किल वक़्त में रणछोड़दास ने उनकी मदद की है और सेना ऐसा रास्ते से ले गया  जहाँ से सेना जल्दी विद्याकोट पहुंच गयी।

रणछोड़दास को इस पुरे इलाके की जानकारी थी इसलिए उसने इस बात का अंदाजा लगा लिया कि पाकिस्तान के 1000 सैनिक कहा छुपे हुये है। उसने भारतीय सेना को जो जगह बतायी थी वो जगह सही साबित हुई। इस क़ामयाबी के बाद रणछोड़दास को भारतीय सेना का  स्काउट घोषित कर दिया गया था। जब भारतीय सेना का  गोला बारूद खत्म हो  गया था उंन्हे गोला बारूद पहुंचने का काम भी रणछोड़दास ने किया था। इस युद्ध भारत ने पाकिस्तान पर एक बहुत बड़ी जीत हांसिल कर ली थी।

1965 के बाद 1971 के युद्ध मे भी भारतीय सेना को कई चौकियों में कब्जा करने में रणछोड़दास का काफी सहयोग रहा था। रणछोडदास की ही मदद से  भारतीय सेना ने पाकिस्तान के पालिनगर में झंडा फहराया था। रणछोड़दास के इस सहयोग के बदले सैम साहब ने 300 रुपये इनाम के रूप में दिए थे क्योंकि सिर्फ रणछोडदास के  कारण ही लाखो भारतीयों सैनिकों की जान बच पायी थी। रणछोड़दास को इस काम के लिये संग्राम मेडल, पुलिस मेडल और समर सेवा स्टार जैसे बड़े पुरस्कारों से समानित किया गया था।

 

आखिर कैसे नाम पड़ा रणछोड़दास  का नाम पागी-

दोस्तो आपकी जानकारी के लिये बता दे कि गुजरात मे दुर्गम स्थान की जानकारी रखने वाले व्यक्ति को पागी कहा जाता है। इसलिये रणछोड़दास का नाम भी रणछोड़दास पागी पर गया। रणछोड़दास को ये नाम फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने दिया था। दरअसल  2008 में  फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ हॉस्पिटल में एडमिट थे , इस दौरान वो बार – बार पागी नाम पुकार रहे थे। तब डॉक्टर ने पूछा कि ये पागी कौन  है तोफ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने बताया कि सन 1971 ने जब भारत रणछोड़दास के कारण जीत गया था ,जब उंन्होने रणछोड़दास को डिनर के लिये इनवाइट किया था।

रणछोडदास को लेने  के लिये फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने एक हेलीकॉप्टर भेजा था। हेलीकॉप्टर के चढ़ने दौरान रणछोड़ दास का बैग हेलीकॉप्टर से नीचे गिर गया था। हेलीकॉप्टर उस बैग को लेने के लिए दोबारा लैंड करवाना पड़ा था। हेलीकॉप्टर के सैनिकों ने जब उस बैग को खोलकर देखा तो उसमें  2 रोटियां प्याज और बेसन की बनी की सब्जी थी जिससे फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और रणछोडदास ने सात में मिलकर डिनर में खाया था।

रणछोड़दास ने 2009 में  अपनी मर्जी से रिटायर हो गए थे ,जिसके बाद 2013 में उनका देहांत हो गया। रणछोडदास का जब देहांत हुआ था तब उनकी उम्र 112 वर्ष थी। बनासकांठा  जिला की इस चौकी का नाम रणछोडदास के नाम पर रखा गया था और वहाँ उनकी प्रतिभा भी लगवायी गयी। 

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