माँ से कम नहीं है ये सास , बेटे की मृत्यु के बाद विधवा बहू को पढ़ाया-लिखाया और बेटी की तरह किया कन्यादान

दोस्तो  विवाह एक ऐसा बंधन होता है जिसमे दो इंसानो के साथ – साथ दो परिवार का भी मिलन होता है। विवाह में पति पत्नी  एक गाड़ी के दो पहिया के समान होते है जिसमे अगर एक पहिया टूट जाता है तो गाड़ी का संतुलन बिगड़ जाता है ।  

 पति के खत्म हो जाने के बाद पत्नी को कितना कष्ट झेलना पड़ता है  लेकिन दोस्तो अब समय बदल चुका है। अब पत्नी को उसकी सास एक माँ के रूप मिल जाये तो फिर बहु को किसी भी बात की समस्या नहीं होती है । दोस्तो आज हम आपको एक ऐसी घटना के  बारे में जानकारी देने आये है –

 असल मे ये मां राजस्थान के सीकर जिले का है जहाँ  पदस्थ शिक्षक कमला  देवी ने 2016 में अपने बेटे का विवाह  सुनीता से करवा दिया था लेकिन शादी के 6 माह बाद  कमला देवी के बेटे का ब्रेन स्ट्रोक के कारण निधन हो ।

कोई और होता तो शायद  अपनी बहू को या तो मायके भेज देता या ज़िंदगी भर उससे ताने देता  उससे घर का काम करवाता लेकिन कमला देवी ने अपनी बहू के साथ ऐसा नही किया । कमला देवी ने अपनी बहू को बहु की  जगह  बेटी के जैसे रखा ।

कमला देवी ने अपनी बहू को अच्छे से पढ़ाया लिखाया ताकि वो अपने पैर पर खड़ी हो सके।  दोस्तो कमला देवी ने अपनी बहू सुनीता को 5 वर्ष तक  अच्छी शिक्षा दिलवाई जिसके कारण सुनीता का लेक्चरर के पद पर चयन हो गया।

 सुनीता देवी यही तक नहीं मानी उन्होंने अपनी बहू के पद पर चयनित होने के पश्चात  उसके शादी योग्य लड़का देखा फिर उसका विवाह  भी किया । शादी में उन्होंने  बहु का कन्यादान भी किया  ,अपनी बहू को एक बेटी के रूप में विवाह करके विदा करने की बात को लेकर चर्चा अब  पूरे सीकर जिले में हो रही है  । 

लोग कमला देवी के तारीफों पूल बांध रहे है क्योंकि जैसा उन्होंने किया हर कोई ऐसा  बोल रहा है कि सबको कमला देवी जैसे ही सास मिले।वही जब कमला देवी से इस बारे में पूछा गया तो कमला देवी ने कहा कि उनकी बहू सुनीता देवी ने कभी अपने ससुराल को  कभी ससुराल नहीं समझा बल्कि मायके समझ कर घर की पूरी सेवा में लगी रहती है।  

कमला देवी ने ये भी बताया कि उसकी बहु सुनीता ने उससे कभी सास ने समझा हमेशा माँ का दर्जा दिया जिस कारण  उन्हें कभी बेटी कमी नही खली ।कमला देवी ने बताया कि सुनीता ने कभी उनमें और अपने माता पिता के अंतर नहीं समझा जिस कारण  से उन्हें कभी किस तकलीफ का सामना नहीं करना पड़ा।

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